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एक अधिकारी के पहनावे से लोग आम मजदूर समझने की करते हैं भूल अब तक 25 बार हो चुका है तबादला

जयपुर:-भारतवर्ष के ग्रामीण इलाकों में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है कोई अंतरिक्ष में अपना झंडा लहरा रहा है तो कोई धरती पर अपनी संस्कृति और पहनावे के कारण अपनी पहचान बना कर अपने इलाकों की मिट्टी से जुड़े रहने का संदेश देता हुआ नजर आता है।


इसी कड़ी में आज हम बताने वाले हैं आपको एक ऐसे अधिकारी की जानकारी जो अधिकारी वर्ग का होने के बावजूद भी अपनी संस्कृति को अनूठी पहचान देते नजर आ रहे हैं रंग बिरंगी राजस्थान में अनेक प्रकार की वेशभूषा है राजस्थान की संस्कृति अपनी अलग पहचान के लिए विश्व भर में जानी जाती है वही मायड़ भाषा मारवाड़ी की मान्यता को लेकर कई संगठन कोशिश में लगे हुए हैं पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर की विधानसभा सिवाना क्षेत्र के समदड़ी तहसील में कार्यरत है विकास अधिकारी नरपत सिंह हरसाणी अपने पहनावे की वजह से काफी चर्चित हैं और अपनी अलग पहचान रखते हैं।


ठेठ देसी अंदाज सादा जीवन में अपने कार्य के प्रति निष्ठा रखने वाले नरपत सिंह एक छोटे से गांव से आते हैं धोती कुर्ता सिर पर पगड़ी बांधकर जब से निकलते हैं तो उन्हें देखकर हर कोई दंग रह जाता है किसी भी अन्दाज से अधिकारी कम और किसान ज्यादा नजर आते हैं कई बार तो निरीक्षण के दौरान कर्मचारी इस अधिकारी को मजदूर समझने की भूल कर जाते हैं तो कई ग्रामीण इलाकों में लोग उनकी वेशभूषा देकर उन्हें अनपढ़ और गवार समझने की भूल कर जाते हैं ।


नरपत सिंह हरसाणी अपने गांव के नाम से पहचाने जाते हैं मूल रूप से बाड़मेर जिले के एक छोटे से गांव हरसाणी के स्थानीय निवासी हैं अपने गांव की संस्कृति और वेशभूषा के नाम में अपने गांव का नाम हरसाणी जोड़ कर रखते हैं जहां भी इनका तबादला होता है वहां के कर्मचारी सक्रिय हो जाते हैं पदभार ग्रहण करते ही प्रत्येक ग्राम पंचायतों की अधिकारियों के साथ सरकारी कार्यों का औचक निरीक्षण करने के लिए बगैर जानकारी के ही निकल पड़ते हैं अनियमितता पाए जाने पर हाथों-हाथ कारण बताओ नोटिस थमा ना इनकी पहचान है जिसके कारण अधिक समय तक यह एक जगह पदस्थापित नहीं रह पाते इनका जल्दी तबादला हो जाता है राजनीतिक दल और रसूखदार भी इनके तबादलों की पुरजोर कोशिश करते हैं वही कर्मचारी और पंचायती राज विभाग के जनप्रतिनिधि या तो नेताओं की शरण में जाकर गुहार लगाते हैं या ईश्वर से उनके तबादले की प्रार्थना करते हैं ।


नरपत सिंह मूलत: बाड़मेर जिले के सुदूर सीमावर्ती गांव हरसाणी से आते हैं जो मूलभूत सुविधाओं से अभी भी वंचित है तथा भाटी बेल्ट में स्थित है एक साधारण परिवार से संबंध रखते हैं शुरुआती शिक्षा सरकारी स्कूल हरसाणी में हुई उसके बाद सरकारी विद्यालय में बाड़मेर में पढ़ाई प्रारंभ की ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षक के रूप में इन्होंने अपनी पहली नौकरी की तो मारवाड़ की लोक संस्कृति लोक जीवन लोक संगीत और लोक जीवन के प्रति आकर्षित हुए ।

बाद में शिक्षक रहते हुए विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए बिना किसी मार्गदर्शन और बिना किसी कोचिंग के प्रशासनिक सेवा की इन्होंने तैयारी प्रारंभ की प्रशासनिक अफसर बनना उनकी मां का एकमात्र सपना था जो उनकी आदत थी और जिसने हमेशा हरसाणी को प्रेरित किया उसने ही कहा था कि बेटा कितना भी बड़ा अफसर बन जाना अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता अपने पारिवारिक संस्कार और अपने पहनावा मत भूल जाना यह वाक्य आज भी उनके दिलो-दिमाग में गुंजायमान होता है इसके बाद उनका चयन राजस्थान प्रशासनिक सेवा में ग्रामीण विकास राज्य सेवा में खंड विकास अधिकारी के रूप में हुआ।

प्रशासनिक सेवा करते समय अनुभव हुआ कि गांव में के विकास और ग्रामीण जनता के जीवन में बेहतरी के लिए सेवा करने का अवसर मिला है तो गरीब कमजोर वर्ग और महिलाओं आदि के जीवन में बेहतरी के लिए जितना भी योगदान दे सके वह देंगे अधिकतम कोशिश करेंगे संवेदनशील और जवाबदेह अफसर बनने की कोशिश करेंगे आज जनमानस में उनकी अलग ही छवि है।
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